Thursday, 23 February 2012

इस जहाँ में


इस  जहाँ  में  सबको  आपस  का  सहारा  चाहिए |
क्या ग़लत है  ग़र  मुझे  दामन  तुम्हारा  चाहिए ||

दो  तिहाई  हिस्सा  लेकर  भी  भरी  नीयत  नहीं |
अब ज़मीन से इस समुंदर  को  किनारा  चाहिए ||

रात  भर  पीते  रहे  सब  तेरे  जल्वों  की  शराब |
मुझसे तो पूछा नहीं  क्या  कुछ  दुबारा  चाहिए ||

तंगहाली  ने  किया  मुझको   परेशाँ   इस  तरह |
जो भी मुझ को चाहिए बस  वो   उधारा  चाहिए ||

माल   सारा   पी  गए  भूखा  रहा  सारा  अवाम |
और क्या पीने  को  अब ख़ूँ भी  हमारा  चाहिए ||

आज़मा  कर  देख  लो  हाज़िर  हमारी  जान  है |
प्यार का बस आपका  इक  ही   इशारा  चाहिए ||

बादशाहत  चाहिए  मुझ  को  ज़माने  की  नहीं |
ज़िंदा रहने का फ़क़त मुझ को  इजारा  चाहिए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 



Wednesday, 22 February 2012

एतराज़


तुमसे   ये   एतराज़   हमें   यार   आज   है |
क्यूँ बर्फ़ से  भी  सर्द  तुम्हारा  मिज़ाज  है ||

क़िस्मत में है नियाज़ जिसके एक  भी यहाँ |
उस खुश नसीब शख़्स का रोशन सिराज है ||

मिलते नहीं किसी से तुम्हारे कभी ख़याल |
कैसी  तुम्हारी  क़ौम  है  कैसा   समाज  है ||

लौटे हैं तेरे दर से सभी  रोज़   तिशनालब |
कितना अजीब सा तेरे घर का रिवाज  है ||

इक आप ही नहीं जो हैं हर वक़्त मुब्तिला |
अपने  भी  घर में ढेर सारा  कामकाज  है ||

बस  आपके यहाँ पे फ़क़त आप के  सिवा |
हर शख़्स देखिये बड़ा ही खुश मिज़ाज है ||

माना नहीं कभी भी हक़ीमों का मशविरा |
मैं  जान ता हूँ  मेरा  मरज़  लाइलाज  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Tuesday, 21 February 2012

झूठी महब्बतों


झूठी   महब्बतों    का    भरम    पालता    नहीं |
मैं बात  अपने  दिल  की   कभी  टालता   नहीं ||

मुझको  नकारता   है जो उसकी तरफ़  तो  मैं |
हसरत   भरी    निगाह    लिए   ताकता  नहीं ||

आये   ख़ुदाई    बीच   में   तो  बात  है  अलग |
वरना   मैं   ज़िम्मेदारियों   से   भागता  नहीं ||

अब तक जमीं पे चलने की आयी नहीं तमीज़ |
उड़ने  की   कभी   आसमाँ  में   ठानता   नहीं ||

कोई    सराहे    या    न  सराहे   मेरा  कलाम |
लेकिन   कहे   बग़ैर    कभी   मानता    नहीं ||

है    कौन   दे   रहा   जो   मुझे  रोज़  हौसला |
मैं  आज तक भी उसका पता  जानता  नहीं ||

जो  आग  मुझ में है वही तुझे में भी आग हो |
मैं   भीख   माँगू  प्यार की दिल मानता नहीं ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Monday, 20 February 2012

धरती क्या मेरा घर भी


धरती   क्या    मेरा  घर  भी |
गिरवी    रक्खा  है  सर  भी ||

साँपों   की  हिम्मत  तो  देख |
चढ़    जाते  हैं  छत  पर  भी ||

दिलकश    जल्वे  हैं  लेकिन |
लगता   है    उनसे   डर  भी ||

नेता    मतलब  की  ख़ातिर |
करवा    सकते  हैं  शर  भी ||

उड़ने      की    चालाकी    में |
कट   जायेंगे    ये   पर   भी ||

कर्जा   है    जो  कुदरत  का |
देना  पड़ता   मर   कर  भी ||

चींज़ों  की जब हो  क़िल्लत |
रक्खा  रह  जाता   ज़र  भी ||

मेरा     हक़   ये   तेरा    हक़ |
क्या मिल पाया लड़ कर भी ||

ख़ुद्दारी        के  बदले     में |
मैं   दे   सकता  हूँ  सर  भी ||

सब   की ख़ातिर   खोला है |

दिल  ही   क्या मैंने दर भी ||


डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 16 February 2012

इन दिनों


कुछ  हैं  बड़े  अजीब  से  हालात  इन  दिनों |
सबके  जुदा -जुदा  हैं  ख़यालात  इन  दिनों ||

दिल आपके ही  गा  रहा   नग़्मात इन  दिनों |
क्या कर रहा  है  इश्क़  करामात  इन  दिनों ||

अव्वल तो हो न उनसे  मुलाक़ात  इन  दिनों |
हो जाए तो न कुछ हो कभी  बात  इन  दिनों ||

संसद का हाल पूछ के  क्या  कीजिये  जनाब |
घूंसों  के  संग  चलती  वहां  लात  इन  दिनों ||

सब  उलटे -सीधे  काम  जो  भी  शहर  में हुए |
सब  में  लगे  उन्हें  मेरा  ही  हाथ  इन  दिनों ||

घुट्टी में क्या  पिला  दिया  उनको  रक़ीब  ने |
दोनों    दिखाई   दे   रहे   हैं   साथ  इन  दिनों ||

मौसिम  ने रंग बदल लिया इंसान  की  तरह |
वरना   कभी   हुई   यह  बरसात  इन  दिनों ||

हुक्काम  जिस  में  पड़ गए  हैं  डेरा  डाल कर |
वो   ही   सजी   है   देख  हवालात  इन  दिनों ||

उठने लगा है जिहन में क्या फिर कोई ख़लल |
करते   बहुत   हो  आप  सवालात  इन  दिनों ||

बेवक़्त अब न कीजिये जाने की  आप  ज़िद |
अच्छे नहीं  हैं  शहर  के  हालात   इन  दिनों ||

मैं   दौड़ने   लगा   हूँ   तेरी  जुस्तजू  में  बस |
दिन देखता हूँ अब न कोई  रात   इन  दिनों ||

अब भूल बैठे हैं सभी  आपस के   प्यार  को |
घायल सभी के  हो रहे जज़्बात  इन  दिनों ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

Wednesday, 15 February 2012

चाहत


मुझ  से  चाहत कहाँ आपकी |
साफ़   नीयत  कहाँ  आपकी ||

अब   इनायत कहाँ  आपकी |  
वो   महब्बत  कहाँ  आपकी || 

घर   मेरा   ही   जलाने  चले |
है   शराफत  कहाँ   आपकी ||  

चार  काँधे  भी  हासिल  नहीं |
क्यों जी दौलत कहाँ आपकी ||  

दुश्मनों  से  घिरे   हर  तरफ़  |
अब वो ताक़त कहाँ  आपकी ||   

जिसकी खाते थे क़समें सभी |
वो   सदाक़त  कहाँ  आपकी ||  

डा० सुरेन्द्र  सैनी 
  

Tuesday, 14 February 2012

चले आओ


हया लेकर अदाओं  में  चले  आओ  चले  आओ |
मेरी  बेताब  बाहों   में  चले  आओ  चले  आओ ||

तुम्हारी दीद की उम्मीद में ये  दिल  धड़कता   है |
बिछी आँखें हैं राहों   में  चले  आओ  चले  आओ ||

तेरे एहसास की गरमी की अब मुझको ज़रुरत है |
बढ़ी   ठंडक  हवाओं में  चले  आओ  चले  आओ || 

फरेबों से भरी  दुन्या में कुछ भी  तो  नहीं  रक्खा |
महब्बत  की  पनाहों में  चले  आओ  चले  आओ || 

तुम्हारी  याद  में  आँखें  हैं  नम  होठों  पे  नाले  हैं |
गुज़ारिश है ये   आहों में  चले  आओ  चले  आओ || 

ज़रा बच कर ज़माने की निगाहों   से  फ़क़त  मेरी |
निगाहों  ही    निगाहों में  चले  आओ  चले  आओ || 

यक़ीनन आज़माइश से तो हम डरते नहीं हरगिज़ |
बड़ा  दम  है  वफाओं में  चले  आओ   चले  आओ || 

दुआ   मंज़ूर   होती   ही   नहीं  कोई  तुम्हारे  बिन |
असर  करने  दुआओं में  चले  आओ  चले  आओ || 

बहारें  झूम  उठती  हैं  तेरे  क़दमों   की  आहट  से |
शफ़क़ बन कर फ़ज़ाओं में चले आओ चले आओ || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी   
  

Monday, 13 February 2012

ख़ुदकुशी की


ख़ुदकुशी  की  आपने  क्यों  बात  की |
है     नहीं   बेकार   इतनी   ज़िन्दगी ||

ग़मज़दा  दुन्या   में   हैं   इतने  यहाँ |
क्या समझते हो कि बस हो आप ही ||

कौन  इन  सबसे  बचा है आज तक |
बेबसी   हो   बेकली   या  मुफ़लिसी ||

वो    तेरा   पहलू   में  पहरों   बैठना |
याद आता   है  मुझे   वो  आज  भी ||

कुछ  न  कुछ  कुर्बानियां  देनी  पड़ें |
सोच  कर  ये  कीजिएगा  आशिक़ी ||

वो  इबादत अब ख़ुदा की  क्यों  करे |
जिसने भी मन की  तरंगे  मार  ली ||

उसकी  आँखों  में   कभी  देखा  नहीं |
जिसकी मैंने आज तक इमदाद की ||

ज़िंदगी  जो  जी रहा हूँ अब  तलक |
तेरी   यादों     के   सहारे   काट  दी ||

क्या   झुकेगी  ज़िंदगी  में  ये नज़र |
जब   ख़यालों   में  रहे   पाक़ीज़गी ||

आँख हो उठती मेरी बरबस ही नम |
जब  भी  देखूं  आँख  में  तेरी  नमी ||

ग़र लगे तुमको सही  तो  मान  लो |
बात मैंने आज तक  जो  भी  कही ||

आप  ने    रक्खा  क़दम तो देखिये |
कश्ती मेरी बिन ख़ला के चल पडी ||

मुंह फुला कर आप जो बैठे अबस |
बात   क्या हमने भला एसी  कही ||

दिल के दुखड़ों को भुलाने के लिए |
इक जरीअ: है करो  तुम  शायरी ||

आदमी  से आदमी मिल कर रहे |
आदमी  के  काम  आये  आदमी ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


Sunday, 12 February 2012

सीने में सौ दिल


सीने  में   सौ  दिल  हमारे  हो  नहीं  सकते |
हम  किसी के  हैं  तुम्हारे   हो  नहीं  सकते ||

है  हमेशा  लत  जिन्हें  उंगली  पकड़ने  की |
वो  किसी  के  भी  सहारे   हो  नहीं  सकते ||

ख़ुद को फैला ले समुंदर जितना  जी  चाहे |
दूर    पर  उससे   किनारे  हो  नहीं  सकते || 

घोले हैं जो ज़हर नफ़रत  का  फ़ज़ाओं  में | 
वो   ख़ुदा   के  तो   दुलारे  हो  नहीं  सकते ||

देख   लूँ   जी  भरके   उनको  आज  बेपर्दा |
रोज़   तो   एसे   नज़ारे   हो   नहीं   सकते || 

ये तो मुमकिन है फ़क़त हो आपकी ग़लती |
पर  ग़लत   भी  लोग सारे हो  नहीं  सकते ||

है  कहीं पर कुछ न कुछ तो दाल में काला |
पल  में  यूँ रोशन सितारे हो   नहीं  सकते || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Thursday, 9 February 2012

अगरचे कामयाबी


अगरचे   कामयाबी   ने   बड़ा   मशहूर  कर  डाला |
मगर मुझको मेरे अपनों के दिल से दूर कर डाला ||

भरा ग़ुस्सा था जो दिल में उसे काफ़ूर  कर  डाला |
हमारे  पास   वो  आये  हमें  मशकूर   कर  डाला ||

ज़माने को बदलने का इरादा जब   किया  जिसने |
उसी को ज़हर  पीने  को  यहाँ  मज्बूर  कर  डाला ||

चमकता था कभी अपना भी चेहरा चाँद की मानंद |
मगर  बीमारियों ने  कुछ   उसे   बेनूर  कर  डाला ||

तुम्हे लेकर सजा रक्खे  थे हमने ख़ाब जो दिल  में |
तुम्हारी  बेरुख़ी  ने  सबको  चकनाचूर  कर  डाला ||

मुझे  ख़ुशहाल  देखा  तो  पडौसी  ने  भी  मेरे  अब |
हसद में आ के अपने  आपको  गय्यूर  कर  डाला ||

किसी ने ज़िद में आ के मौत  का पैग़ाम भेजा है |
हमारी  सादगी   देखो   उसे    मंज़ूर  कर   डाला ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Wednesday, 8 February 2012

लगे गिनने अभी से


लगे गिनने अभी से  ग़ाम  अभी  आग़ाज -ए -मंज़िल   है |
सफ़र आसान था अब तक सफ़र  आगे  का  मुश्किल  है ||

बख़ूबी     जानता   है    वो    बिकाऊ    आज    आदिल  है |
तभी   तो    क़त्ल    करके    घूमता    बेख़ौफ़  क़ातिल  है ||

ज़रा  हिम्मत  दिखा   कश्वर   ख़ला  जल्दी  चला  अपनी |
लगा      है   डूबने   सूरज   अभी    भी    दूर    साहिल  है ||

लगे  धब्बे    गुनाहों   के    मिरी   दस्तार    पर    लेकिन |
उतारूं तो भी मुश्किल है कि  पहनू  तो  भी  मुश्किल   है ||

नहीं   सुनता   मेरी   कुछ  आप  ही  की  बात  करता  है |
कभी  ये  था  मेरा  बस  आप  रखिये  आपका  दिल   है ||

मेरा   जो   हाल   पूछे   तुझसे   तो  ए  नामाबर  कहना |
न कुछ कहने के क़ाबिल है न कुछ सुनने के क़ाबिल है ||

बचा  के  रखूं  सादिक़   इस   को   बर्फ़ीली   हवाओं   से |
नसें   सिकुड़ी   हुईं   इसकी  बड़ा  कमज़ोर  ये  दिल  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी