Monday, 20 February 2012

धरती क्या मेरा घर भी


धरती   क्या    मेरा  घर  भी |
गिरवी    रक्खा  है  सर  भी ||

साँपों   की  हिम्मत  तो  देख |
चढ़    जाते  हैं  छत  पर  भी ||

दिलकश    जल्वे  हैं  लेकिन |
लगता   है    उनसे   डर  भी ||

नेता    मतलब  की  ख़ातिर |
करवा    सकते  हैं  शर  भी ||

उड़ने      की    चालाकी    में |
कट   जायेंगे    ये   पर   भी ||

कर्जा   है    जो  कुदरत  का |
देना  पड़ता   मर   कर  भी ||

चींज़ों  की जब हो  क़िल्लत |
रक्खा  रह  जाता   ज़र  भी ||

मेरा     हक़   ये   तेरा    हक़ |
क्या मिल पाया लड़ कर भी ||

ख़ुद्दारी        के  बदले     में |
मैं   दे   सकता  हूँ  सर  भी ||

सब   की ख़ातिर   खोला है |

दिल  ही   क्या मैंने दर भी ||


डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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