धरती क्या मेरा घर भी |
गिरवी रक्खा है सर भी ||
साँपों की हिम्मत तो देख |
चढ़ जाते हैं छत पर भी ||
दिलकश जल्वे हैं लेकिन |
लगता है उनसे डर भी ||
नेता मतलब की ख़ातिर |
करवा सकते हैं शर भी ||
उड़ने की चालाकी में |
कट जायेंगे ये पर भी ||
कर्जा है जो कुदरत का |
देना पड़ता मर कर भी ||
चींज़ों की जब हो क़िल्लत |
रक्खा रह जाता ज़र भी ||
मेरा हक़ ये तेरा हक़ |
क्या मिल पाया लड़ कर भी ||
ख़ुद्दारी के बदले में |
मैं दे सकता हूँ सर भी ||
सब की ख़ातिर खोला है |
दिल ही क्या मैंने दर भी ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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