Monday, 13 February 2012

ख़ुदकुशी की


ख़ुदकुशी  की  आपने  क्यों  बात  की |
है     नहीं   बेकार   इतनी   ज़िन्दगी ||

ग़मज़दा  दुन्या   में   हैं   इतने  यहाँ |
क्या समझते हो कि बस हो आप ही ||

कौन  इन  सबसे  बचा है आज तक |
बेबसी   हो   बेकली   या  मुफ़लिसी ||

वो    तेरा   पहलू   में  पहरों   बैठना |
याद आता   है  मुझे   वो  आज  भी ||

कुछ  न  कुछ  कुर्बानियां  देनी  पड़ें |
सोच  कर  ये  कीजिएगा  आशिक़ी ||

वो  इबादत अब ख़ुदा की  क्यों  करे |
जिसने भी मन की  तरंगे  मार  ली ||

उसकी  आँखों  में   कभी  देखा  नहीं |
जिसकी मैंने आज तक इमदाद की ||

ज़िंदगी  जो  जी रहा हूँ अब  तलक |
तेरी   यादों     के   सहारे   काट  दी ||

क्या   झुकेगी  ज़िंदगी  में  ये नज़र |
जब   ख़यालों   में  रहे   पाक़ीज़गी ||

आँख हो उठती मेरी बरबस ही नम |
जब  भी  देखूं  आँख  में  तेरी  नमी ||

ग़र लगे तुमको सही  तो  मान  लो |
बात मैंने आज तक  जो  भी  कही ||

आप  ने    रक्खा  क़दम तो देखिये |
कश्ती मेरी बिन ख़ला के चल पडी ||

मुंह फुला कर आप जो बैठे अबस |
बात   क्या हमने भला एसी  कही ||

दिल के दुखड़ों को भुलाने के लिए |
इक जरीअ: है करो  तुम  शायरी ||

आदमी  से आदमी मिल कर रहे |
आदमी  के  काम  आये  आदमी ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 


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