ख़ुदकुशी की आपने क्यों बात की |
है नहीं बेकार इतनी ज़िन्दगी ||
ग़मज़दा दुन्या में हैं इतने यहाँ |
क्या समझते हो कि बस हो आप ही ||
कौन इन सबसे बचा है आज तक |
बेबसी हो बेकली या मुफ़लिसी ||
वो तेरा पहलू में पहरों बैठना |
याद आता है मुझे वो आज भी ||
कुछ न कुछ कुर्बानियां देनी पड़ें |
सोच कर ये कीजिएगा आशिक़ी ||
वो इबादत अब ख़ुदा की क्यों करे |
जिसने भी मन की तरंगे मार ली ||
उसकी आँखों में कभी देखा नहीं |
जिसकी मैंने आज तक इमदाद की ||
ज़िंदगी जो जी रहा हूँ अब तलक |
तेरी यादों के सहारे काट दी ||
क्या झुकेगी ज़िंदगी में ये नज़र |
जब ख़यालों में रहे पाक़ीज़गी ||
आँख हो उठती मेरी बरबस ही नम |
जब भी देखूं आँख में तेरी नमी ||
ग़र लगे तुमको सही तो मान लो |
बात मैंने आज तक जो भी कही ||
आप ने रक्खा क़दम तो देखिये |
कश्ती मेरी बिन ख़ला के चल पडी ||
मुंह फुला कर आप जो बैठे अबस |
बात क्या हमने भला एसी कही ||
दिल के दुखड़ों को भुलाने के लिए |
इक जरीअ: है करो तुम शायरी ||
आदमी से आदमी मिल कर रहे |
आदमी के काम आये आदमी ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
No comments:
Post a Comment