Thursday, 23 February 2012

इस जहाँ में


इस  जहाँ  में  सबको  आपस  का  सहारा  चाहिए |
क्या ग़लत है  ग़र  मुझे  दामन  तुम्हारा  चाहिए ||

दो  तिहाई  हिस्सा  लेकर  भी  भरी  नीयत  नहीं |
अब ज़मीन से इस समुंदर  को  किनारा  चाहिए ||

रात  भर  पीते  रहे  सब  तेरे  जल्वों  की  शराब |
मुझसे तो पूछा नहीं  क्या  कुछ  दुबारा  चाहिए ||

तंगहाली  ने  किया  मुझको   परेशाँ   इस  तरह |
जो भी मुझ को चाहिए बस  वो   उधारा  चाहिए ||

माल   सारा   पी  गए  भूखा  रहा  सारा  अवाम |
और क्या पीने  को  अब ख़ूँ भी  हमारा  चाहिए ||

आज़मा  कर  देख  लो  हाज़िर  हमारी  जान  है |
प्यार का बस आपका  इक  ही   इशारा  चाहिए ||

बादशाहत  चाहिए  मुझ  को  ज़माने  की  नहीं |
ज़िंदा रहने का फ़क़त मुझ को  इजारा  चाहिए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 



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