मुझ से चाहत कहाँ आपकी |
साफ़ नीयत कहाँ आपकी ||
अब इनायत कहाँ आपकी |
वो महब्बत कहाँ आपकी ||
घर मेरा ही जलाने चले |
है शराफत कहाँ आपकी ||
चार काँधे भी हासिल नहीं |
क्यों जी दौलत कहाँ आपकी ||
दुश्मनों से घिरे हर तरफ़ |
अब वो ताक़त कहाँ आपकी ||
जिसकी खाते थे क़समें सभी |
वो सदाक़त कहाँ आपकी ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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