Wednesday, 15 February 2012

चाहत


मुझ  से  चाहत कहाँ आपकी |
साफ़   नीयत  कहाँ  आपकी ||

अब   इनायत कहाँ  आपकी |  
वो   महब्बत  कहाँ  आपकी || 

घर   मेरा   ही   जलाने  चले |
है   शराफत  कहाँ   आपकी ||  

चार  काँधे  भी  हासिल  नहीं |
क्यों जी दौलत कहाँ आपकी ||  

दुश्मनों  से  घिरे   हर  तरफ़  |
अब वो ताक़त कहाँ  आपकी ||   

जिसकी खाते थे क़समें सभी |
वो   सदाक़त  कहाँ  आपकी ||  

डा० सुरेन्द्र  सैनी 
  

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