तुमसे ये एतराज़ हमें यार आज है |
क्यूँ बर्फ़ से भी सर्द तुम्हारा मिज़ाज है ||
क़िस्मत में है नियाज़ जिसके एक भी यहाँ |
उस खुश नसीब शख़्स का रोशन सिराज है ||
मिलते नहीं किसी से तुम्हारे कभी ख़याल |
कैसी तुम्हारी क़ौम है कैसा समाज है ||
लौटे हैं तेरे दर से सभी रोज़ तिशनालब |
कितना अजीब सा तेरे घर का रिवाज है ||
इक आप ही नहीं जो हैं हर वक़्त मुब्तिला |
अपने भी घर में ढेर सारा कामकाज है ||
बस आपके यहाँ पे फ़क़त आप के सिवा |
हर शख़्स देखिये बड़ा ही खुश मिज़ाज है ||
माना नहीं कभी भी हक़ीमों का मशविरा |
मैं जान ता हूँ मेरा मरज़ लाइलाज है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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