Wednesday, 22 February 2012

एतराज़


तुमसे   ये   एतराज़   हमें   यार   आज   है |
क्यूँ बर्फ़ से  भी  सर्द  तुम्हारा  मिज़ाज  है ||

क़िस्मत में है नियाज़ जिसके एक  भी यहाँ |
उस खुश नसीब शख़्स का रोशन सिराज है ||

मिलते नहीं किसी से तुम्हारे कभी ख़याल |
कैसी  तुम्हारी  क़ौम  है  कैसा   समाज  है ||

लौटे हैं तेरे दर से सभी  रोज़   तिशनालब |
कितना अजीब सा तेरे घर का रिवाज  है ||

इक आप ही नहीं जो हैं हर वक़्त मुब्तिला |
अपने  भी  घर में ढेर सारा  कामकाज  है ||

बस  आपके यहाँ पे फ़क़त आप के  सिवा |
हर शख़्स देखिये बड़ा ही खुश मिज़ाज है ||

माना नहीं कभी भी हक़ीमों का मशविरा |
मैं  जान ता हूँ  मेरा  मरज़  लाइलाज  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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