झूठी महब्बतों का भरम पालता नहीं |
मैं बात अपने दिल की कभी टालता नहीं ||
मुझको नकारता है जो उसकी तरफ़ तो मैं |
हसरत भरी निगाह लिए ताकता नहीं ||
आये ख़ुदाई बीच में तो बात है अलग |
वरना मैं ज़िम्मेदारियों से भागता नहीं ||
अब तक जमीं पे चलने की आयी नहीं तमीज़ |
उड़ने की कभी आसमाँ में ठानता नहीं ||
कोई सराहे या न सराहे मेरा कलाम |
लेकिन कहे बग़ैर कभी मानता नहीं ||
है कौन दे रहा जो मुझे रोज़ हौसला |
मैं आज तक भी उसका पता जानता नहीं ||
जो आग मुझ में है वही तुझे में भी आग हो |
मैं भीख माँगू प्यार की दिल मानता नहीं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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