इस जहाँ में सबको आपस का सहारा चाहिए |
क्या ग़लत है ग़र मुझे दामन तुम्हारा चाहिए ||
दो तिहाई हिस्सा लेकर भी भरी नीयत नहीं |
अब ज़मीन से इस समुंदर को किनारा चाहिए ||
रात भर पीते रहे सब तेरे जल्वों की शराब |
मुझसे तो पूछा नहीं क्या कुछ दुबारा चाहिए ||
तंगहाली ने किया मुझको परेशाँ इस तरह |
जो भी मुझ को चाहिए बस वो उधारा चाहिए ||
माल सारा पी गए भूखा रहा सारा अवाम |
और क्या पीने को अब ख़ूँ भी हमारा चाहिए ||
आज़मा कर देख लो हाज़िर हमारी जान है |
प्यार का बस आपका इक ही इशारा चाहिए ||
बादशाहत चाहिए मुझ को ज़माने की नहीं |
ज़िंदा रहने का फ़क़त मुझ को इजारा चाहिए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी